Garib kisan ki kahani
जून का महिना था चिलचिलाती धुप में रामलाल अपने मनमे बडबडाता हुआ जा रहा था। धुप इतनी तेज थी की जमीन भी आग सी तप रही थी, रामलाल के पैर में चंपल भी नहीं थी। वो नंगे पैर लम्बे लम्बे पगों से आगे बढ़ता जा रहा था। उसको अपनी नहीं बल्कि अपने खेतो की बहोत ज्यादा फिक्र थी। जंगली भुंडो के झुण्ड खेतो में आते थे और कुछ ही मिनीटो में खेत को नहस तहस कर देते थे।
रामलाल के खेत में इस साल बहोत ही अच्छी तरबुचे की फसल लगी थी। जिसे देखकर उसकी जान में जान आती थी। उसके पास पैसा नहीं था। लेकिन उसने गाव के ही एक जमीनदार से पैसा उधार लिया हुआ था। जिस पर जमीनदार का ब्याज बहोत तेजी से बढ़ रहा था। रामलाल मन ही मन में सोच रहा था। इस बार तरबुचे बेचकर जमीनदार का सारा कर्ज चुकाऊंगा। और इसके बाद अपनी बीबी के लिए एक अच्छी सी साड़ी और अपने लिए एक कुर्ता खरीद लूँगा। बच्चो के पास भी कपडे नहीं है। उन्हें भी कुछ न कुछ देना पड़ेगा। आगे शर्दी भी आने वाली है। जिसके लिए रजाई और कम्बल भी लेना पड़ेगा, वह यही सब अपने मन में बडबडाते हुए खेतो की तरफ जा रहा था। उसे अपने पैरो की फिक्र नहीं थी। आम आदमी तो ऐसी गरमी में नंगे पैर नहीं चल पाता। लेकिन रामलाल अपने मनमे सपने देखता हुआ अपने खेतो की और बढ़ता चला जा रहा था।
खेत के पास पहोचते ही रामलाल गदगद हो गया। खेत में बहोत अच्छी तरबुचे की फसल थी। वह हर समय खेत में ही आते जाते रहेता था। क्योकि अगर धोके से भी भुंड आ गया तो उसका पूरा का पूरा खेत कुछ ही समय में ख़त्म हो जाएगा। और उसके सपने मिटटी में मिल जायेगे। इसलिए रामलाल दिन में और रात में पूरा समय खेत में ही गुजारता था।
रामलाल की पत्नी भी फूली नहीं समां रही थी। क्योकि दस साल बाद उनके खेतो में इतनी अच्छी फसल लगी हुई थी। लेकिन गर्मी बहोत ज्यादा था।
जमींदार अक्षर आके रामलाल को धमकी देता रहेता था। फसल काट दो और मेरी पाई पाई चूका दो नहीं तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा। रामलाल ने हाथ जोड़कर कहा – इस साल खेत में फसल अच्छी लगी है साहब, मै आपका एक एक पैसा चूका दूंगा।
तरबुचे की फसल लगभग तैयार थी। जीतनी ख़ुशी आज रामलाल को हो रही थी इनका अंदाजा लगाना आज मुश्किल था। वह मन ही मन में खुशी से झूम रहा था। लेकिन उसको पता था की अगर जरा सी भी हमसे चुक हुई तो मेंरा सबकुछ नष्ट हो जाएगा। रात में भी वह जरा सी आहट से भी उठ के बैठ जाता। अपने खेत में इधर उधर देखता और आकर फिर से सो जाता, उसकी नींद कभी पूरी नहीं हो पाती थी। उसके सपने में भी खेतो की याद बनी रहेती थी।
गरीब किसान की कहानी
तिन दिन बाद अब तरबुचे की फसल को कटाई करके शहर भेजने वाला था। रामलाल और उसकी पत्नी बहोत खुश थे। उन्हें पता था की अब हमारा भी अच्छा समय शुरू होने वाला था। हम सब भी अच्छे कपडे पहेनेगे। हमारे पास भी रजाई और गुदगुदे गद्दे होंगे। ताकि शर्दी में पूरी रात ठिठुर ठिठुर कर ना गुजारनी पड़े, रामलाल और उसकी पत्नी ने हजारो सपने अपने मनमे संजोके बैठे थे। क्योकि फसल इतनी जो अच्छी थी। रामलाल की फसल देख कर पड़ोसियों को भी जलन हो रही थी।
रामलाल ने अपने पुरे खून पसीना लगाकर फसल तैयार की थी। चार बीघे की फसल गाव में किसी ने पहेली बार की थी। और इतनी अच्छी फसल शायद आस पास के गाव में कई साल बाद रामलाल ने की थी। खेत में तरबुचे चमक रहे थे। इस साल तरबुचे की किंमत भी बहोत अच्छा था। इसलिए रामलाल सोच रहा था की उसका सारा कर्ज चुकता हो जाएगा। और बहोत सारे रुपैये भी बच जायेगे।
अगले दिन रामलाल सुबह जगा और हालाकि रात वह सो नहीं पाया था। रातभर जानवरों को भगता रहा। मगर सुबह जब उसने अपनी फसल को देखा, तो एकदम से उसकी ख़ुशी से उनका चहेरा एकदम लाल हो गया। उसकी पत्नी खाने का लेके खेत में आई और रामलाल को खाना खिलाया। और उसके बाद रामलाल आराम करने लगा। रामलाल की पत्नी खाना देकर चली गई।
रामलाल खेत में एक छोटी सी लकड़ी की झोपड़ी बना कर रहेता था। उस झोपड़ी में आराम करने लगा। दोपहर का बारा बज चूका था। रामलाल भी उठ उठ कर इधर उधर देख रहा था। क्योकि दोपहर में जंगली भुंडो का खतरा जयादा बना रहेता था। चारो तरफ धुप के कारण सन सन की आवाज आ रही थी। चारो और सन्नाटा छाया हुआ था। रामलाल के खेत से गाव की दुरी लग्भग एक किलोमीटर थी।
रामलाल ने इधर उधर देखा कोई जानवर दूर दूर तक नहीं था। यह सोचकर वह आराम करने लगा। इतने में ही उसे कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला, रामलाल को नींद आते ही एक भुंड का बड़ा झुण्ड आया और उसके खेत में टूट पड़ा। रामलाल इतना थका हुआ था की वह बहोत ही गहेरी नींद में सो गया। उसे कुछ पता ही नहीं चला और भूंड ने उनके खेत को कुछ ही मिनीटो में पूरी तरह से तहस नहस कर दिया। सारे तरबुचे और पौधे पूरी तरह नष्ट कर दिया। रामलाल नींद में सपने देख रहा था। भुंडो ने पूरा का पूरा खेत साफ कर दिया था।
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दोपहर को तिन बजे के आस पास जब रामलाल की पत्नी खेत में आई तब खेत में उस समय सिफ दो ही भुंड घूम रहे थे। बाकि खेत पूरी तरह से साफ हो गया था। उसमे एक भी तरबुचा नहीं बचा था। रामलाल की पत्नी दौड़ती हुई गई जहा रामलाल सोया हुआ था। उसने रामलाल को जगाया और जब रामलाल उठ कर अपने खेत की तरफ देखा तो उसका पूरा रंग ही उड़ गया। वह वही पर अपना माथा पटकने लगा। उसके सारे सपने बस थोड़ी ही देर में चकना चूर हो गए। अब वह सोच रहा था जमीनदार का कर्ज कैसे चुकाऊंगा ।
रामलाल की पत्नी बेहोश होकर वही ही गिर गई। रामलाल को भी होश नहीं था । उन को भारी आघात लगा हुआ था। वह बहोत बड़ा आदमी बनने का सपना नहीं देख रहा था। वह सिर्फ अपना घर सुधारने के बारे में सोच रहा था। लेकिन अब उसके सारे सपने पूरी तरह से टूट गए थे। रामलाल और उसकी पत्नी की आँखे खेत को देखकर पथरा सी हो गई थी। खेत में चर रहे दो भुंड भी अब जा रहे थे। सायद उनका भी पेट भर गया था। खेत में ऐसा कुछ भी नहीं बचा था की उसे जानवर भी खा सके, रामलाल ने आसमान की तरफ देखा और फिर वही गिरकर बेहोश हो गया। समाप्त…