#KissePapaKe

                                                               #KissePapaKe

सबसे पहले मैं बता दूँ कि मेरे पापा बलदेव सिंह (अमरीश पूरी) जैसे बिलकुल भी नहीं थे/ न हैं.....

ये उन दिनों की बात है जब मैं कॉलेज में थी....

मैंने अपनी मम्मी से फॉर्म पर साइन करने के लिए कहा, मुझे पता था मम्मी "ना" ही कहेंगी..... क्योंकि उन्हें हमेशा समाज की परवाह होती थी! वे भी क्या करती, तीन-तीन बेटियों को पैदा करने के ताने डायरेक्ट इनडायरेक्ट रूप से वे समाज से और कई बार दादी से भी सुनती रहती थीं, यहाँ तक कि नानी भी कई बार कह देती थी - "एक लड़का होता तो परिवार पूरा हो जाता!" खैर ये किस्सा फिर कभी..........

तो अभी आते हैं मुख्य किस्से पर,

तो मैंने भी हार नहीं मानी और मम्मी के पीछे पड़ी रही कि एनसीसी के फॉर्म पर साइन कर दीजिये मुझे कैंप में जाना है -

"सात दिन अकेली लड़की घर से बाहर, नहीं बिलकुल नहीं" मम्मी बोली 

"मम्मी उस कैंप में मेरी सहेलियां और हमारी टीचर भी साथ में जा रही हैं, मैं अकेली नहीं जा रही" मैंने मम्मी को समझाने की कोशिश की;

"न बोला न" मम्मी गुस्से में बोल रही थी और बस लग ही रहा था कि इंडियन डिवाइस🩴 कभी भी उड़कर मेरे चेहरे का जोगराफिया बिगाड़ सकती है, लेकिन मैं एनसीसी के कैंप में जाने के लिए इतनी ज्यादा उत्साहित थी कि मुझे मार खाकर भी अगर फॉर्म पर साइन होते तो वो भी मंजूर था!

"पापा जी से पूछ लूँ?" मैंने पैंतरा बदलते हुए कहा; मम्मी कुछ नहीं बोली 

और मैंने झट से पापा जी को फोन मिला दिया☎️ (पापा उस समय किसी काम से शहर के बाहर गए हुए थे), लेकिन पापा उस समय फोन पर मिल नहीं पाए (उस समय मोबाइल नहीं होता था), 

फिर शाम को जैसे ही फोन की घंटी बजी तो मैंने झट से भागकर फोन उठा लिया;

पापाजी मुझे धीरे धीरे कुछ समझाने लगे, मैंने फोन रखकर मम्मी की अलमारी से 'पंजाब एंड सिंध बैंक' की पासबुक निकाली और पीछे के पेज पर पापा के साइन को देख-देखकर अपने फॉर्म पर साइन करने लगी;

"ये क्या कर रही है?" मम्मी ने पूछा 

"पापा जी ने कहा है कि अगर मम्मी साइन नहीं करती तो मेरे साइन की नकल करके फॉर्म पर खुद ही साइन कर लेना" मैं बोली तो मम्मी ने गुस्से में मुझे घूरा,

इतने में (शुक्र है) फोन की घंटी बजी और इस बार मम्मी ने फोन उठाया, मुझे तो पता ही था कि पापा जी का फोन है!

मम्मी ने पाँच मिनट पापा जी से बात की और फिर चुपचाप फॉर्म पर साइन करने लगी, मुझे उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे हमारे घर के बाहर से एनसीसी के गुजरते ट्रक में से मेरी सहेलियां मुझे पुकार रही हैं और मेरे पापा मुझे कह रहे हैं -

"जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिंदगी"

लेकिन ये सिर्फ एक सपना था, क्योंकि एनसीसी का ट्रक हमें कॉलेज में लेने आने वाला था, घर पर नहीं 🤓और मेरा सपना सचमुच पूरा होने वाला था और इसका क्रेडिट सिर्फ और सिर्फ मेरे पापा को जाता है, जिन्होंने मेरे सपनों के पंखों को उड़ान दी... (❤️यू पापा)!

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मेरे पापा हमेशा मेरा संबल रहे हैं और मेरे पापा हमेशा कहते थे (और आज भी कहते हैं) - हमारी बेटियाँ बेटों से कम हैं क्या! (मुझे तो लगता है 'म्हारी छोरियां छोरों से कम है क्या', ये डायलॉग फिल्म वालों ने मेरे पापा जी से जी चोरी किया है)  

 धन्यवाद😊

{सभी लेखकों से अनुरोध है कि अपने साथी लेखकों का उत्साह बढ़ाएं और उनके लेखों को पढ़कर उन्हें और अधिक लिखने के लिए उत्साहित करें

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