#KissePapaKe
कभी घर की छत, तो कभी घनी छांव है पिता।
कभी रक्षक तो कभी सर पर आसमां है पिता।।
एक व्यापारी ने अपने आखिरी समय मे अपने इकलौते बेटे(धनपाल) से कहा, " बेटा मेरे पास तुम्हे देने के लिए जमीन जायदाद तो नही, लेकिन पूरे जीवन मैने ईमानदारी और सच्चाई के साथ व्यापार किया है। मैं अपने आखिरी वक्त मे तुम्हें आशीर्वाद ही दे सकता हू कि, तुम जो भी करोगे उसमे सफल होगे, धूल मिट्टी को भी हाथ लगा दोगे तो वो सोना बन जायेगा, तुम सदा सुखी रहो",…. कहते हुए पिता ने अपनी आखिरी सांस ली।
पिता के बाद घर की समस्त जिम्मेदारी धनपाल के कंधो पर आ गई। उसने ठेले गाड़ी से समान बेचने की शुरुआत की, फिर दुकान खोली, और कामयाब होता गया, और समय के साथ पूरे नगर का सबसे बड़ा व्यापारी बन गया।
धीरे धीरे उसका व्यापार पूरे देश और विदेश मे भी फैल गया। इस सबका श्रेय वो अपने पिता के द्वारा प्राप्त आशीर्वाद को देता था।
एक दिन उसके एक करीबी ने कहा, "यदि तुम्हारे पिता इतने ही महान थे तो खुद क्यों नहीं अमीर बन गए??"
धनपाल ने कहा, "मेरे पिता एक ईमानदार और सच्चे इंसान थे, उनके आशीर्वाद मे बल था, सच्चाई थी, जिसके कारण मैं दिनो दिन कामयाब हो रहा। वैसे भी मैने अपने पिता के आशीर्वाद को बलवान बताया है"।
पिता के आशीर्वाद से उसने जीवन मे सिर्फ लाभ ही कमाया। एक दिन उसकी इच्छा हुई कि, क्यों न एक बार असफलता का स्वाद भी चखा जाए। उसने अपने मित्र से कहा, "क्या कोई ऐसा व्यापार है, जिसमें लाभ होने की संभावना बहुत कम हो!"
मित्र ने कहा, "हां है ना! तुम भारत से लौंग खरीदकर अफ्रीका के जंजीबार मे बेचो। क्योंकि जंजीबार मे लौंग बहुतायत मे होते है, और वहां के लौंग भारत मे बेचे जाते है। तो इसमें लाभ हो ही नही सकता….साथ ही तुम्हारे पिता का आशीर्वाद भी यहां तुम्हारे काम नही आयेगा"।
धनपाल को ये बात सही लगी, फिर भी उसे पूर्ण विश्वास था कि, पिताजी का आशीर्वाद मुझे नुकसान नहीं होने देगा।
उसने भारत में लौंग खरीदे और जहाज में भरकर जंजीबार द्वीप पहुंचा। वहां पहुंचकर वह रेत के रास्ते से व्यापारियों से मिलने को निकला।
रास्ते मे उसे वहां का सुल्तान अपने सैनिकों के साथ मिला। सुलतान ने जब उसका परिचय जाना तो व्यापारी होने के नाते उसका अपने द्वीप पर स्वागत किया।
धनपाल ने गौर किया कि, सभी सैनिकों के हाथ मे छलनी है। उसने आदरपूर्वक इसका कारण पूछा?
तब सुलतान ने कहा, " आज सुबह मैं समुंद्र तट पर टहलने आया था, और मेरे हाथ से मेरी बेशकीमती अंगूठी गिर गई, ये अंगूठी मुझे बहुत अजीज़ है क्योंकि एक फकीर ने आशीर्वाद स्वरूप मुझे ये अंगूठी दी थी। तो रेत से अंगूठी छान कर निकालने के लिए मैने सैनिकों को छलनी लेकर चलने को कहा"।
खैर तुम बताओ कि, किस वस्तु का व्यापार करने आए हो?
व्यापारी ने कहा, " जी, लौंग का"।
सुलतान, " क्या?? लेकिन यहां तुमसे कोई लौंग नही खरीदेगा, क्योंकि यहां तो लौंग बहुत होता है, ये तो घाटे का सौदा होगा।"
व्यापारी ने कहा, "जी मुझे अपने पिता के आशीर्वाद से आजतक सिर्फ लाभ ही मिला है, और मुझे पूर्ण विश्वास है इस व्यापार मे भी लाभ मिलेगा"।
सुलतान ने पूछा, "कैसा आशीर्वाद??"
व्यापारी ने नीचे झुककर एक मुठ्ठी रेत हाथ मे भरकर कहा, "मेरे पिता के आशीर्वाद स्वरूप अगर मैं धूल या मिट्टी भी छू दू तो वो सोना बन जाएगी,….कहते हुए व्यापारी हाथ से रेत छोड़ने लगा, और तभी उसमे से सुलतान की अंगूठी गिरी।
सुलतान अंगूठी पाकर खुश हो गया, "वाकई तुम्हारे पिता का आशीर्वाद सच्चा है, तुमने रेत को छूकर ही मेरी बेशकीमती अंगूठी ढूंढ दी"।
व्यापारी धनपाल भी खुश हो गया, एक बार फिर से अपने पिता के आशीर्वाद को फलीभूत होते देखकर।
सुलतान ने अंगूठी ढूंढने की खुशी मे धनपाल के सारे लौंग मुंह मांगी कीमत पर खरीद लिए, और इस तरह से एक बार फिर से धनपाल को लाभ मिला।
ये सच्ची कहानी गुजरात के व्यापारी धनपाल की है। जिसने अपने पिता के आशीर्वाद के बल पर जीवन मे अनेक लाभ प्राप्त किए।