शादी के लिए पति के घर से मुझे देखने सास ननद और जेठानी आईं थीं। जो एक साड़ी और झुमके और एक चेन मुझे उपहार स्वरूप भेंट की गई। बड़े आश्चर्य की बात थी की बिल्कुल वही साड़ी और झुमके और चेन जेठानी ने भी पहन रखे थे। उस वक्त मन में यही भावना आईं की परिवार में बहुत एकता है,तभी तो दोनो के लिए सब एक समान है।
हमारे यहां गहना जब चढ़ाते है तो साड़ी ससुराल से आती है। मै भी इंतजार कर रही थी,ताकि लहंगा बदलकर साड़ी पहन सकु, क्योंकि पंडित जी बुला रहे थे मंडप में।
लेकिन बहुत देर तक जब साड़ी उधर से नहीं आईं तो मेरी मौसी ने जाकर मंडप के ही पास बैठी मेरी चाची सास से इस विषय ने बात की। चाची सास जहां बारात ठहरा था वहां फोन किया तो पता चला मेरी जेठानी ने वो साड़ी पहन ली है क्योंकि उसे पसंद है। चाची सास बहुत नाराज़ हुई जेठानी पर, लेकिन अब दोनो परिवार की प्रतिष्ठा का प्रश्न था,तो मौसी ने मुझे लहंगा में ही मंडप में बैठा दिया।
जब ससुराल गई तो मेहमानों को मुझे चढ़ाई गई गहने की पूरी पेटी दिखाई गई। पेटी खुलते ही मेरी जेठानी उसमे से एक हार का सेट उठा ली जो सबसे बड़ा और भारी सेट था। और रख ली।
अब तो मुझे उनकी लालच साफ दिख रही थी, पहली बार लगा ये एकता है। दूसरी बार प्रतिष्ठा के नाम पर मै झुक गई। लेकिन कुछ भी कहना एकदम नई दुल्हन होने के नाते आसान ना था। तो इसबार भी उनकी नजायज जिद के सामने झुक गई।
लेकिन अति तो तब हो गई जब मेरे साड़ी की वी .आई .पी खोली गई। उन्हें एक दो नहीं बल्कि सारी साड़ियां चाहिए थी।सास ने बोला ले लो। रीना के पास कौन सा कपड़ों की कमी है। अब झुकना मेरे स्वाभिमान को मंजूर ना था, लेकिन पति ने समझाया, " दे दो कौन सा इनसे तेरी जिन्दगी कटनी है"। चुप थी मै लेकिन बहुत दुखी! क्योंकि शादी की साड़ियां खास होती है।
किसी रिश्ते को बचाने के लिए एक दो बार झुकना ठीक है लेकिन जब बार बार झुकना पड़े तो रुकना ही ठीक है।
बैंगलोर से जब पहली बार ससुराल आना हुआ। मेरे कमरे से वो निकलने को तैयार नहीं थी। मै इंतजार करती रही, जब ससुर को पता चला तो उसे उनके कमरे में जाने को कहा, इसपर अचानक जेठानी की तबीयत खराब हो गई। सास बोली अब बीमारी में कैसे बोला जाय बड़ी बहू को निकालने को। मैं अब झुकने को कतई तैयार नहीं थी।
मैंने कहा," वाकई बहुत बीमार है ये, लेकिन सिर्फ मानसिक तौर पर। इन्हे किसी अच्छे डॉक्टर को दिखलाइए। वैसे सिर्फ कमरा ही आपको चाहिए या मेरे पति भी। उन्हें भी छोड़ ही जाती हूं😤
बोलकर मै अपनी ननद के कमरे में चली गई। पति भी मेरे पीछे चल दिए। और जेठानी मेरा मुंह देखते रह गई।
वैसे उनकी नाजायज जिद आज भी घर वाले पूरी करते है। किसी को एक नेल पेंट भी लगाते देख ले तो उसे वहीं चाहिए। लेकिन मुझसे उलझने में अब सोचती ही नहीं है।
जरूरत पड़ने पर भी एक हद तक ही झुकना ठीक है। लेकिन जब हर बार झुकना पड़े तो ये आपके स्वाभिमान पर आघात है।
चित्र गूगल से लिया है।
रीना सिंह भारद्वाज